Friday, August 8, 2008

KING


The reference is to Bahadur Shah Zafar (II) who was the King during that period (1857)

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ORIGINAL PASSAGE (IN HINDI)

NAVBHARAT TIMES, NEW DELHI, 19th July, 1965. Pg.4. Column 7 & 8
१८५७ का आन्दोलन
- अयोध्याप्रसाद गोयलीय -

एक रोज़ मैं दरीबे से जा रहा थाक्या देखता हूँ कि एक फौज तिलंगों की रही हैमैं भी देख कर गुलाब गंधी की दुकानके सामने खड़ा हो गयाआगे - आगे बैंड वाले थेपीछे कोई ५०-६० सवार थेउनके घोड़े क्या थे, धोबी के गधे मालूम होते थेबीच में सवार थे मगर गठारिओं की कसरत से जिस्म का थोड़ा सो हिस्सा ही दिखाई देता थायह गठारिआं क्याथीं ? दिल्ली की लूट , जिस भी आदमी को खाता पीता देखा, उसके कपड़े तक उतरवा लिए, जिस रुपये -पैसेवाले को देखा, उस के घर पर जा कर ढही दे दी और कहा, चल हमारे साथ किले, तू अंग्रजों से मिला हुआ है, जब तक कुछ रखवा लिया, उसका पिंड छोड़ाअगर दिल्ली के चरों तरफ़ अंग्रेज़ी फौज का मुहासरा होता तो शरीफ लोग कभी के दिल्ली से निकल गए होते

गरज खुदाई फौजदारों का यह लश्कर गुल मचाता, दीन-दीन के नारे लगाता मेरे सामने से गुज़राइस जमगफी (भीड़) के बीचों बीच दो मिआं थेयह कौन थे ? आली जनाब बहादुर खां साहब सिपहसलारलिबास से बजाये सिपहसलार के दूल्हा मालूम होते थेजड़ाऊ ज़ेवर में लदे थेपहनते वक्त शायद यह भी मालूम करने की तकलीफ़ गवारा की गयी थी कि कौन-सा मरदाना ज़ेवर है और कौन-सा जनानाजैसे ख़ुद ज़ेवर से आरास्त थे, उसी तरह उनका घोड़ा भी ज़ेवर से लदा हुआ थामाश के आटे की तरह ऐठे जाते थेमालूम होता था खुदाई अब इनके हाथ गयी हैगुलाबगंधी ने जो इन लुटेरों को आते देखा तो चुपके से दुकान बन्द कर ली और अन्दर दरवाजे से झांकता रहा

खुदा मालूम क्या इत्तेफ़ाक़ हुआ कि बहादुर खान का घोड़ा एन उसकी दूकान के सामने आकर रुकाबहादुर खां ने इधर-उधर गर्दन फेर के पूछा यह किसकी दूकान हैउनके एड़ी कांग ने अर्ज़ की - "गुलाबगंधी की "। फ़रमाया "इस बदमाश को यह ख़बर नहीं थी कि मां बदौलत इधर से गुज़र रहे हैंबन्द करने के क्या मायने ? अभी खुलवाओ "।

ख़बर नहीं इस हुक्मे-कज़ा (मृत्यु संदेश) का बेचारे लालाजी पर क्या असर हुआ ? हमने तो यह देखा कि एक सिपाही ने तलवार का दस्ता किवाड़ पर मार कर कहा "दरवाज़ा खोलो ।" और जिस तरह "सम-सम" खुल जा अल्फाज़ से अली बाबा के किस्से में चोरों के खजाने का दरवाज़ा खुलता थाउसी तरह इस हुक्म से गुलाबगंधी की दूकान खुल गयीदरवाज़े के बीचों बीच लाला जी हांफ़ते हांफते हाथ जोड़े खड़े थेकुछ बोलना चाहते थे, मगर जबान यारी देती थीउस वक्त बहादुर खां कुछ खुश थेकिसी मोटी आसामी को मार कर आए होंगेकहने लगे तुम्हारी ही दूकान से बादशाह के यहाँ इत्र जाता है ? लाला जी ने बड़ी ज़ोर से गर्दन को टूटी हुई गुडिया के तरह झटका दियाहुक्म हुआ कि जो इत्र बेहतर से बेह्तर हो, वोह हाजिर करो

वे
लडखडाते हुए अन्दर गए और दो कंटर इत्र से भरे हुए हाज़िर किएमालूम नहीं बीस रुपये तोले का इत्र था या तीस रुपए तोले काबहादुर खां ने दोनों कंटर लिएकाग निकालने की तकलीफ कौन गवारा करताएक की गर्दन दूसरे सेटकरा दी दोनों गर्दनें टूट गयींइत्र सूंघा कुछ पसंद आया एक कंटर घोड़े की आयाल पर (गर्दन के बालों पर) उलट दिया और दूसरा दुम परकंटर फैंक कर हुक्म दिया गया - 'फार्वदी' । इस तरह बेचारे गुलाबगंधी का सैंकडों रुपयों का नुकसान करके यह हिंदुस्तानिओं को आजादी दिलाने वाले चल दिए

(नकूश के आप बीती नम्बर से)

Wednesday, August 6, 2008

Dariba Kalan

Street of the Incomparable Pearl', Dariba Kalan. The street derives its name from a Persian phrase 'Dur e be baha', meaning 'pearl without compare' because since the period of Mughal Emperor Shah Jahan, the street used to be the popular market of precious stones, gems, gold and silver jewelery. Till today it is known as jewelers' street although most of shops in the street now deal in silver and costume jewelery. It is a very good market for purchasing new or old silver jewelry, because of the wide choice available.

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Tilangas

'Tilangas' is apparently a reference to Telingana, in mdern Andhra Pradesh, where the British originally recruited many of their sepoys during the Carnatic Wars of the eighteenth centry. In Delhi the name seems to have stuck as an appellation for British-trained troops, although the British had long since replaced Telingana with Avadh as their prinicpal recruitment field, so that in 1857 most sepoys would have come from modern Uttar Pradesh and parts of Bihar. 'Purbias', which in Delhi was used alernatively with Tilangas, simply means Easterners. Both words carry the same connotation of foreignness, implying 'these outsiders from the East'.

A large proportion of the Mutiny Papers are the petitions of ordinary Delhiwallahs who had suffered at the hands of the sepoys; invariably they were addressed to Bahadur Shah Zafar, who they hoped would protect them against the increasingly desperate Tilangas. Significantly, in their petitions to the courty, the words the ordinary people of Delhi used to describe what was happening in 1857 were not Ghadr (mutiny) and still less Jang-e Azadi (freedom struggle or war of independence) so much as fasaad (riots)and danga (disturbance or commotion)

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